BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।

उत्तर -

उपनिषद् शब्द के सिद्धि 'उप' और नि उपसर्गपूर्वक 'सद्' धातु से 'क्विप' लगाकर हुई है। 'उप' का अर्थ 'समीप' नि का अर्थ 'निश्चय' या 'निष्ठापूर्वक' और 'सद्' का अर्थ बैठना है। दूसरा शाब्दिक अर्थ है- 'तत्वज्ञान के निमित्त गुरु के समीप निश्चयपूर्वक अथवा निष्ठापूर्वक बैठना। रहस्यात्मक तत्वज्ञान का प्रतिपादन प्राचीन काल में गुरु-शिष्य से वाद अथवा प्रश्नोत्तर शैली में होता रहा है। उक्त तत्वज्ञान का संग्रह इन ग्रन्थों में हुआ है इसी कारण इन ग्रन्थों को भी 'उपनिषद्' कहा जाने लगा। उपनिषद् का ब्रह्मविद्या के सन्दर्भ में भी अर्थ किया गया है। इस दृष्टि से सद्' धातु के 'विशरण' 'गति' और 'अवसादन' अर्थों की प्रसंग विशेष में व्याख्या इस प्रकार की जाती है। विशरण = नाश होना जिससे संसार की बीजभूति अविद्या का विनाश होता है गति = पाना या जानना जिससे ब्रह्म की प्राप्ति होती है या उसका ज्ञान होता है अवसादन = शिथिल होना जिससे मनुष्य के दुःख शिथिल होते हैं। इसीलिये उपनिषद के भाष्य-प्रणयन के समय शंकराचार्य ने अविद्या नाश दुःख निरोध और ब्रह्म प्राप्ति इन तीन अर्थों को लेकर उपनिषदों को ब्रह्म विद्या का प्रतीप कहा है। वेद के अन्तिम भाग होने को इन्हें 'वेदान्त' भी कहा जाता है।

उपनिषदों के महत्व का निरूपण न केवल भारतीय बल्कि वैदेशिक विद्वानों ने शतमुख होकर किया है। वेदों के अनन्तर आख्यकों में जिस आध्यात्मिक जिज्ञासा मनन, चिन्तन और स्वानुभूति की प्रक्रिया का बीज पल्लवित हुआ उसका सुव्यवस्थित रूप उपनिषदों में दिखाई देता है।

उपनिषद् के सम्बन्ध में आचार्य बलदेव उपाध्याय का कथन है "भारतीय तत्वज्ञान तथा धर्मसिद्धान्तों के मूल स्रोत होने का गौरव उन्हीं उपनिषदों को प्राप्त है। उपनिषद् वस्तुतः यह आध्यात्मिक मानसरोवर है जिससे ज्ञान की भिन्न-भिन्न सरितायें निकल कर इस पुण्यभूमि में मानव मास ने ऐहिक कल्याण तथा अमुषिक मंगल के लिये प्रवाहित होती है। वैदिक धर्म की मूल-त्व प्रतिपादिका प्रस्थानत्रयी में मुख्य उपनिषद' ही है। अन्य प्रस्थान - गीता तथा ब्रह्मसूत्र उसी के ऊपर आश्रित हैं। भारतवर्ष में उदय होने वाले व्यक्त दर्शनों का सांख्य और वेदान्त आदि का मूल ग्रन्थ ही नहीं है अपितु जैन तथा बौद्ध दर्शनों के भी मौलिक तथ्यों की अधारशिला यही है।"

प्रख्यात जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर तो उपनिषदों का परमभक्त था। उसके व्यथा के अतुल सिन्धु में डूबे लम्बे एकांकी जीवन में उपनिषदों ने जीवन के प्रति जो उत्साह संचारित किया था उसे मुक्त कण्ठ से स्वीकार करते हुए उसने कहा है "उपनिषद मेरे जीवन में शान्ति के साधन रहे हैं और मृत्यु में भी शान्ति के साधन रहेंगा।" विण्टरनित्स के अनुसार लुडविग स्टाइन ने जिस एकात्ववाद को विश्व की समस्याओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है। वह दार्शनिक विचार भारतीय उपनिषदों में तीन सहस्र पूर्व ही प्रतिपादित हो चुका था।

उपनिषदों में निहित तत्वज्ञान का मुगल राजकुमार दाराशिकोह भी अत्यन्त प्रेमी था और उसने कुछ उपनिषदों के फारसी में भी अनुवाद किये हैं। उसने उन्हें 'देवी रहस्यों का भण्डागार' कहा है। उपनिषदों का दाराशिकोह - कृत अनुवाद 'सिर्र-ए-अकबर' (महान रहस्य) के नाम से प्रसिद्ध है। उसका कथन है कि उपनिषद् की कुरान शरीफ में उल्लिखित किताबिम-मक्नुनिन ( छिपी हुई पुस्तक) है।

जर्मन कवि गेटे भी उपनिषद की प्रशंसा करने वालों में से एक था। उपनिषदों उपनिषदों की संख्या के विषय में गवेषणकों के बीच विवाद है। १०८ से लेकर २०० तक उपनिषदों की संख्या मानी जाती है। ग्यारह उपनिषदों की प्रमुख उपनिषदों के रूप में गणना की जाती है। ये हैं ईश, केन, कठ, प्रश्न मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, वृहदाख्यक और श्वेताश्वतर। इन्हीं पर शंकराचार्य ने स्वभाष्य प्रणयन किया है।

उपनिषदों का विभाजन कई प्रकार से किया गया है। प्रत्येक उपनिषद् किसी न किसी वेद से सम्बद्ध है जिसका विवरण यह है ऋग्वेद ऐतरेय और कौषीतकि आदि दस उपनिषदें; शुक्लयजुर्वेदीय- ईश वृहदारण्यक आदि २६ उपनिषदें; कृष्णायजुर्वेदीय - कठ तैत्तिरीय श्वेताश्वतर कैवल्य आदि ३२ उपनिषदें; सामवेदीय-केन छान्दोग्य मैत्रायणीय आदि २६ उपनिषदें; अथर्ववेदीय प्रश्न मुण्डक माण्डूक्य महानारायण आदि ३२ उपनिषदें।

विख्यात जर्मन संस्कृतज्ञ डापसन ने उपनिषदों का विभाजन इस प्रकार किया है-

१. प्राचीन गद्यात्मक उपनिषदें जिनका गद्य ब्राह्मणों के गद्य के सदृश प्राचीन लघुकाय तथा सरल है- वृहदाख्यक, छान्दोग्य, तैर्त्तिरीय, ऐतरेय, कौषतकि तथा केन उपनिषद्।

२. प्राचीन पद्यात्मक उपनिषदें जिसका पद्य सरल तथा वैदिक पद्यों के सदृश है रुद्र, ईश, श्वेताश्वतर, महानारायण।

३. पिछली गद्यात्मक उपनिषदें प्रश्न, मैत्री या मैत्रीयणीय माण्डूक्य।

४. आथर्वण उपनिषदें, जिनमें तान्त्रिक उपासना विशेष सांख्य वेदान्तपरक उपनिषदें शैव उपनिषदें वैष्णव उपनिषदें - शाक्त उपनिषदें।

इस वर्गीकरण में अनेक दोष निकाले हैं जिनकी ओर उपनिषदों के गम्भीर अध्येता रामचन्द्र दत्तात्रेय रानडे तथा प्राध्यापक बेलवेलकर ने इङ्गित किया है। इन्होंने पुनः वर्गीकृत किया है जिसके मतानुसार छान्दोग्य, वृहदारण्यक, कठ, ईश, ऐतरेय, तैत्तिरीय, मुण्डक, कौषीतकि, केन तथा प्रश्न उपनिषदें प्राचीन हैं। श्वेताश्वतर माण्डूक्य और मैत्रायणीय द्वितीय स्तर की उपनिषदें हैं। बाष्कल छागलेय आषेय तथा शौनक उपनिषदों का परिगणन तृतीय श्रेणी के अन्तर्गत किया गया है।

उपनिषद दर्शन के सम्बन्ध में डॉ. कपिलदेव द्विवेदी का यह मत उल्लेखनीय है- उपनिषदों का दर्शन विरोधी गुणों का समन्वय है एक ओर ज्ञानार्ग की उपादेयता वर्णित है तो दूसरी ओर कर्ममार्ग और भक्तिमार्ग की एक ओर प्रवृत्तिमार्ग की प्रधानता है तो दूसरी ओर निवृत्ति मार्ग की एक ओर 'सर्व खल्विद ब्रह्म' वर्णित है तो दूसरी ओर द्वैत और त्रैत सिद्धान्तों का वर्णन है। उपनिषदों की प्रमुख विशेषता यह है कि वे सर्वत्र विवादास्पद स्थलों पर समन्वय प्रस्तुत करती है यथा विद्या और अविद्या संभूति और असंभूति श्रेय और प्रेम ज्ञान और कर्म प्रवृत्ति और निवृत्ति एकत्व और अनेकत्व अद्वैत और द्वैत।

उपनिषदों में प्रमुख रूप से ब्रह्म आत्मा सृष्टि की उत्पत्ति कर्म आदि विवेचना है। वृहदारण्यक उपनिषद् में ब्रह्म स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है वह न स्थूल है न सूक्ष्म न लघु है न गुरु उसमें न रस है न गन्ध है उसके न आँख है न कान। उसमें आकाश ओत-प्रोत है।

'अस्थूलमनण्वह स्वमदीर्घम् ........... अरसमगन्धमचक्षुष्कमश्रोत्रम् ......... अस्मिन्नु खल्वरे गार्ग्याकाश ओतश्च- प्रोतश्च। उपनिषदों में लौकिक भोगों के प्रति अनास्था प्रकट की गई है। कठोपनिषद् में वर्णित है कि ये भौतिक सुख-भोग सभी इन्द्रियों के तेज की जीर्ण कर देते हैं

'सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।

'गीता' में उस निष्काम कर्म-योग का सिद्धान्त निरूपित है जिसका मूल आधार ईशावास्योपनिषद् का यह मन्त्र है-

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नारे ॥

औपनिषद् विचार-दर्शन में कर्मकाण्ड की उपेक्षा की गयी है किन्तु निष्काम कर्म की प्रशंसा ही प्राप्त होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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